गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

मेरे घर का छोटा आँगन


हरसिंगार,रजनीगंधा के 
वृक्ष बने हैं मधुबाला .

मृदु-समाधि में धीरे धीरे,
ले जाती सुगंध-हाला .

कभी किसी के द्वार न जाता ,
मैं मधुरिम मधु पीने को,

मेरे घर का छोटा आँगन
ही है मेरी मधुशाला.

-- अरविंद पाण्डेय 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही दिल से लिखा है ,
    आपकी उत्तम रचनाओ मे से एक
    जो कि मुझे बहुत पसंद आया.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही दिल से लिखा है ,
    आपकी उत्तम रचनाओ मे से एक
    जो कि मुझे बहुत पसंद आया.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही दिल से लिखा है ,
    आपकी उत्तम रचनाओ मे से एक
    जो कि मुझे बहुत पसंद आया.
    priyanka Jha

    जवाब देंहटाएं
  4. "मेरे घर का आँगन ही है मेरी मधुशाला "
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ |
    अच्छी रचना |बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही अच्छा, जहाँ रस मिले, वही मधुशाला।

    जवाब देंहटाएं

आप यहाँ अपने विचार अंकित कर सकते हैं..
हमें प्रसन्नता होगी...