रविवार, 20 नवंबर 2011

मनु बनी लक्ष्मी बाई..



मुख पर थी चन्द्र-कांति,हांथों में चमक रहा था चन्द्रहास.
डलहौजी का दल दहल दहल,पहुंचा झांसी के आसपास.
पर, मात खा गया महाराजरानी के अद्भुत कौशल से.
था किला मिला खाली-खाली,कुछ मिला नहीं था छल-बल से.

फिर, कौंध उठीं बिजली सी तात्या टोपे संग ग्वालियर में.
भीषण था फिर संग्राम हुआ, अँगरेज़ लगे पानी भरने.
पर,नियति-सुनिश्चित था कि राजरानी धरती का त्याग करें.
उनके रहने के योग्य धरा थी नहीं , स्वर्ग में वे विहरें.

मनु बनी लक्ष्मी बाई , पर वह थी शतरूपा सी मनोज्ञ .
आईं थी मर्त्य-धरा पर , पर थीं वे सदैव ही स्वर्ग-योग्य 


- अरविंद पाण्डेय

चन्द्रहास = तलवार .. 
मनोज्ञ = सुन्दर 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद ही बढिया समझाते हुए लिखा है।

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  2. वह सुरेख ऊर्जा बन कर के लहर लहर लहराती थी,
    झाँसी की धरती रानी पर गर्वोन्नत हो जाती थी।

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