सोमवार, 11 जुलाई 2011

मुक्त आज मैं, जीवन की प्रतिकूल वेदनाओं से,


हृदय बना है सेतु आज जिस पर अम्बर से आकर.
चन्द्र, सूर्य, तारक आनंदित, धरा-भ्रमण करते हैं.
मुक्त आज मैं, जीवन की प्रतिकूल वेदनाओं से,
संसीमित यह तन,असीम का अमृत-भोग करता है.

अरविंद पाण्डेय

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की प्रतीकूल वेदनाओं से मुक्त रहना ही चाहिए , बहुत ही छोटी सी हृदय स्पर्ष करती सुंदर कविता हैं ....

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  2. जीवन का यह आनन्दित हल्कापन अलब्ध है अभी तक।

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