सोमवार, 2 मई 2011

मंद मंद बह चला समीरण..


(यह कविता १४/०७/१९८० को लिखी गई थी जो आठ छंदों में है और मेरी पुस्तक '' स्वप्न और यथार्थ'' में प्रकाशित है..)
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पृष्ठ - एक
१ 

सरिता का आलिंगन करने नील, सुदूर गगन से.
उस प्रशांत रजनी में शशि, धरती पर उतर पडा था.
अतुलनीय,अमिताभ देह की शुभ्र कांति बरसाकर.
उसने गतिमय सरिता को भी शाशिमय बना दिया था.

२ 

मुक्ति प्राप्त कर रवि की शोषक,संतापक किरणों से.
विहँस रही थी मंद मंद वह अपनी प्राकृत विजय में.
वर्तमान-सुख के सागर में डूबी - उतराई सी.
विगत दुखों को भूल, एक विस्मय सी बनी हुई थी.

३ 

अहं भूलकर, प्रिय के आलिंगन के सुख में डूबी.
उसके चंचल मृदुल करों से मस्त केलि करती थी.
कुमुद-वृन्द के वस्त्र हो रहे अस्त-व्यस्त प्रतिपल थे.
सकल सलिल अनुरागानिल से उर्मिल , अनुकंपित था.


मंद मंद बह चला समीरण उनको कम्पित करता .
लगा गान करने सरिता का रोम-रोम कल स्वर में .
शुभ्र कौमुदी के प्रकाश में उस रसमय रमणी का  .
अंग अंग परिरम्भ-राग से अनुरंजित दिखता था.


( क्रमशः )


--अरविंद पाण्डेय 




सलिल = पानी 
 अनुरागानिल = प्रेम की हवा 
 उर्मिल = लहराता हुआ 
परिरम्भ-राग = आलिंगन का रंग 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपको पढ़ने में एक विशेष साहित्यिक अनुभूति होती है।

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  2. परम आदरणीय सर, पुस्तक '' स्वप्न और यथार्थ'' में प्रकाशित यह काव्य रचना बहुत ही विशिष्ट एवं अति सुंदर रहष्यो से भरी हुई हैं ...सादर .

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  3. सुखद ...रोम रोम मन रंजित करता हुआ ...
    सृजनात्मकता की पराकाष्ठा दर्शा रहा है ...
    अति सुंदर काव्य .
    बधाई .

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  4. आदरणीय श्री पाण्डेय जी,
    पुस्तक के शीर्षक 'स्वप्न और यथार्थ' से काव्य की भाव गहराई स्वतः स्पष्ट होती है। आपकी लेखनी में आकर्षण शक्ति छिपी है जो पाठकों में आपके नवोन्मेषी साहित्य को पढने का विशेष अनुराग उत्पन्न करती है। आपकी पुस्तक को पढ़ने का कौतूहल है । कृपया उपलब्धि का स्रोत बताएं । हिंदी साहित्य जगत में किये जा रहे योगदान हेतु आपको ढेर सारी बधाइयाँ.........

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