सोमवार, 18 अप्रैल 2011

एक मंजुल नारी की मूर्ति,

भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी   
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स्वप्न :पृष्ठ ६ 
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२६ 
तभी गैरिक प्रकाश का पुंज,
लगा घनता को होने प्राप्त.
एक मनमोहक मधुर सुगंध,
लगी अंतर  में होने व्याप्त.

२७ 
एक मंजुल नारी की मूर्ति,
 दिखाई पडी मुझे तत्काल.
चरण-चुम्बन से परम प्रसन्न,
विहँसता था गुलाब  का जाल.

२८ 
गात पर था पुष्कल परिधान,
आ रहा था अरुणाभ प्रकाश.
उषा-कर में मानो रवि,बंद,
कर रहा था आनंदित हास.

२९ 
सुलाक्षा-ललित चरण-नख-वृन्द,
कर रहे थे यह सुन्दर व्यंग-
रागमय होने के पश्चात ,
प्राप्त होता है उनका संग.

३०
कोकनद-कान्त अधर के बीच,
झांकती थी रदालि मुक्ताभ.
यथा, अनुराग-सरोवर मध्य, 
खिले हों शेत कमल, अमिताभ.

क्रमशः

---अरविंद पाण्डेय 
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गैरिक = गेरुआ रंग का.
पुष्कल = अत्यंत श्रेष्ठ .सुन्दर.
उषा-कर = उषा की किरणे 
सुलाक्षा-ललित नख-वृन्द = नाखून में लगाने वाले रंग से सुन्दर बनाए गए नाखून .
कोकनद = लाल कमल 
रदालि = दांतों की पंक्ति .
मुक्ताभ = मोती जैसी आभा वाली.

6 टिप्‍पणियां:

  1. परम आदरणीय सर , आपकी हिंदी और संस्कृत दोनों ही लेखनी अति उत्कृष्ट हैं , माँ के पूजा की सुंदर कविता हैं | भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी माता पार्वती से मेरी प्रार्थना हैं की मुझे भी पूर्ण शक्ति प्रदान करे ताकि मुझे भी मनोवांछित फल प्राप्त हो .......जय माँ भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी माता पार्वती !!!!!!!!!

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  2. अहा,
    नील परिधान बीच सुकुमार की स्मृति हो आयी।

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  3. कोकनद-कान्त अधर के बीच,
    झांकती थी रदालि मुक्ताभ.
    यथा, अनुराग-सरोवर मध्य,
    खिले हों शेत कमल, अमिताभ.

    अद्भुत प्रस्तुति ....!!
    माँ के चरणों में श्रद्धा से शीश झुक गया |

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  4. सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक, यद्यपि कि मैं शब्दार्थ दिए जाने के बावजूद कुछ शब्दों (जैसे अमिताभ)का अर्थ जानने में अक्षम हूँ. मुझे आपकी रचनाओं को हिंदी साहित्य में अत्यधिक प्रसिद्धि मिलने की संभावना दिखती है, और ऐसा मैं बिल्कुल निरपेक्ष भाव से कह रहा हूँ.

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  5. As usual ur devotion well portrayed
    Ek ek shabd shrdha suman hain devi ke chrnon mein !!!

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