गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मैं हूँ नरेन्द्र, भारत का चिर जागृत विवेक !

१.
मैं हूँ नरेन्द्र, भारत का चिर-जागृत विवेक.
मैं कण कण में प्रतिभास रहा, हूँ किन्तु एक.

मैं काल-पाश से परे अमृत, अक्षर, अकाल.
आकाश,  नाभि है, स्वर्ग, वक्ष मेरा विशाल.

मैं रामकृष्ण का पुत्र, राम मेरा विराम.
मैं नाम-रूप सा दीख रहा,पर हूँ अनाम.

२.
इस्लाम, देह मेरी , आत्मा हिंदुत्व प्रखर .
जीसस की करूणा रक्त बनी मेरे अन्दर.

मैं अग्नि यहोवा का, नानक का अमृत सबद.
शास्त्रार्थ-दीप्त शंकराचार्य का सात्विक मद.

मैं कृष्ण-प्रेयसी   मीरा का मादक नर्तन,
मैं ही कबीर ,चैतन्यदेव  का संकीर्तन 
३.
मैं हिंद-महासागर का हूँ घन-घन गर्जन.
मैं ही देवात्म हिमालय का नंदन कानन.

मैं काली की कृष्णता, शुभ्रता, शिव की  हूँ.
मैं पञ्च-प्राण बन, प्राणी में अनवरत  बहूँ.

मैं नित्य, त्रिकालाबाधित,शाश्वत सत्ता हूँ.
मैं महाविष्णु के  मन की मधुर महत्ता हूँ.



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स्वामी विवेकानन्द  अंगरेजी साहित्य की कक्षा में, एकाग्र मन से, अपने प्राध्यापक श्री हेस्टी का वक्तव्य सुन रहे थे..श्री हेस्टी उस समय विलियम  वर्ड्सवर्थ की प्रकृति संबंधी कविताओं की वास्तविक दिव्यता को व्यक्त करने का प्रयास करते हुए यह कह रहे थे की प्रकृति के सान्निध्य में , मनोरम उपवनों, वन-प्रान्तरों ,लता-गुल्मों के मध्य अपनी ध्वनि-सुगंध विस्तीर्ण करती हुई कोयल जैसी सुरीली प्राणवती  पुष्प-कलिकाओं  को देख कर वर्ड्स वर्थ  समाधिस्थ हो जाते थे और उस समाधि से वापस आने पर वे कवितायें लिखते थे.इसीलिये उनकी कवितायें इतना गहन प्रभाव डालती हैं.........
श्री हेस्टी ने यह भी कहा कि अगर इस भाव् -समाधि को प्रत्यक्ष देखना चाहते हो तो दक्षिणेश्वर में श्री रामकृष्ण परमहंस को जाकर देखो.......................................
और यही से नरेन्द्रनाथ का मन श्री रामकृष्ण के दर्शन , उनकी भाव् -समाधि के प्रत्यक्षीकरण के लिए व्याकुल होता है..
वे अवसर देखते है कि कैसे उनसे मिला जाय.. जिस सत्य का ,, निरपेक्ष सत्य का, अतीन्द्रिय सत्य का , अज्ञेय सत्य का ज्ञान वे करने के लिए तड़प रहे थे , उन्हें लगा कि अब वह क्षण निकट है..और अंततः वह क्षण आता है जब वे श्री रामकृष्ण के निकट जाते हैं और नरेन्द्रनाथ  से स्वामी विवेकानन्द के रूप में उनका जन्म होता है ..


In my adolescence , I used to study Shri Ramkrishna Vachanaamrit every night before sleep and used to dream to be A Sanyaasi like Swami Vivekanand but Alas ! I failed to be ... 
Destiny Dragged me into Indian Police Service.
My Lust to be A Sanyasi will be alive until it happens..
I know I have to come to this earth again to meet my desire..!! 
हरिः शरणं 

----अरविंद पाण्डेय

7 टिप्‍पणियां:

  1. स्वामी जी को समर्पित युवा दिवस के दिन पोस्टेड आपकी यह कविता पूर्व की रचित अन्य कविताओं की तरह ही उत्कृष्ट, प्रशंसनीय एवं पठनीय है।

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  2. परम आदरणीय सर , बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हैं ...जय हिंद !!!!!

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  3. Thanks for sharing with such an awesome composition that is worth appreciating.

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  4. अद्भुत ,....आपकी इन रचनाओं को पढ़ कर मुझे आप में कालिदास जैसी विद्युता की झलक दिखलाई पड़ती है . ..... ..

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  5. Wonderful writeup as always ...admire Vivekanand n his wisdom a lot .

    My Lust to be A Sanyasi will be alive until it happens..
    I know I have to come to this earth again to meet my desire..!!

    ECHO wd ur words Arvind ..wish the same fr me too ....Amin

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  6. Oo God!!! It's just speechless Sir, Don't have exact word to describe its beauty and its awesome fragrance :)

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  7. excellent i have dreamt earlier like this but at present i am in full maya - moh. I just can not escape.

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