मंगलवार, 2 मार्च 2010

रंगों से जो महरूम हैं,उनका भी कर ख़याल

रंगों से भरी है सुबह,है शाम भी रंगीन .
दोपहर में भी शम्स की है रोशनी हसीन.

फूलों के हुस्न की महक लिए हवा चले.
होली में ही सही ज़रा हम भी गले मिलें .

पुरहुस्न है फिजां ,है मज़े में खिला चमन .
मदहोशियाँ कुदरत की पी रहा है मेरा मन .

बदमस्त मेरे दिल से मगर कह रहा गुलाल -
''रंगों से जो महरूम हैं,उनका भी कर ख़याल ''
----अरविंद पाण्डेय