शनिवार, 11 दिसंबर 2010

आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत


जो है व्यवहार तुम्हें अप्रिय ,
वह नहीं किसी के साथ करो.
नैतिकता का बस यही सूत्र ,
प्रिय-कर्म में कभी नहीं डरो.

स्मृति में धर्म और नैतिकता की एक सार्वभौम परिभाषा दी गई है--
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावाधार्यताम.
आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत .
अर्थात-
जो है अपने प्रतिकूल करो मत वह व्यवहार किसी से.
प्रसिद्द जर्मन दार्शनिक इमानुअल कांट ने भारत द्वारा नैतिकता की उपर्युक्त परिभाषा को यथावत स्वीकार करते हुए अपना प्रथम नैतिक नियम प्रतिपादित किया था-
''उसी नियम के अनुसार चलो जिसे तुम सार्वभौम बनाने का संकल्प कर सको.''
उसने उदाहरण दिया कि तुम चोरी अपने यहाँ नहीं होने देना चाहते इसलिए दूसरे के यहाँ तुम्हारे  द्वारा चोरी किया  जाना  तुम्हारे  लिए  अनैतिक  है..और चूंकि,यह स्वस्थ बुद्धि के मनुष्यों की सार्वभौम इच्छा होती है इसलिए चोरी किया जाना सार्वभौम रूप से अनैतिक है.. समाज द्वारा सार्वभौम रूप से स्वीकृत नैतिक-आचरणों के सम्बन्ध में भाषण देने वाले इस नियम के अनुसार स्वयं अनैतिक आचरण कर रहे होते हैं..रजनीश से लेकर अन्य सभी स्वघोषित वैचारिक क्रांति-कारियों की यही स्थिति है.. 



----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है --


सत्ता के पौरुष का पर्याय पुलिस है.
पर,कौन घोलता इस अमृत में विष है.
यह शक्ति-पुंज कैसे असहाय हुआ है.
यह एवरेस्ट क्यों झुक सा अभी गया है.

षड्यंत्र घृणित दिखता जो,वह किसका है.
है सूत्रधार वह कौन, सूत्र किसका है.
विधि के शासन की गरिमा कौन लुटाता.
मर्यादा की रेखा है कौन मिटाता.

दावा करता है कौन न्याय का,नय का.
सारे समाज के शुभ का और अभय का.
वह कौन कि जिसने स्वर्णिम स्वप्न दिखाया.
पर,कर्म किया प्रतिकूल,मात्र भरमाया.

जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है.
तब तब ललनाओं का सुहाग लुटता है.
जब कर्म-कुंड की अग्नि शांत होती है.
तब दुष्टों से धरती अशांत होती है.

जब उच्छृंखल,अपवाचक लोग अभय हों.
जब सत्यनिष्ठ जन को सत्ता का भय हो.
जब श्रेष्ठ,श्रेष्ठता से मदांध सोता है.
वर्चस्व तब अनाचारी का होता है.

विधि के शासन की गरिमा तब लुटती है.
मर्यादा की सब रेखाएं मिटती हैं.
पौरुष का पर्वत भी झुक सा जाता है.
सारा समाज आतंक तले आता है.

इसलिए,अगर सम्मान सहित है जीना 
आतंक का न अब और गरल है पीना .
तब नपुंसकों का बहिष्कार करना है.
क्यों बार बार, बस,एक बार मरना है.

छः दिसंबर कल था और वाराणसी के पवित्रतम प्रसिद्द घाटों - दशाश्वमेध घाट शीतला घाट पर श्री गंगा जी की आरती के समय बम विस्फोट किया गया जिसमें श्री गंगा-भक्त हताहत हुए.. इस देश के एक अरब से अधिक लोग उन कर्णधारों से सलीके से, सही तरीके से यह नहीं पूछ रहे कि तुमने इस बम विस्फोट से पहले जो विस्फोट हुए थे उनके अपराधियों को सज़ा दिलाने कि ज़िम्मेदारी क्यों नहीं निभाई.. कंदहार जाकर उन राक्षसों को क्यों मुक्त किया जो भारत पर हमले के अपराधी थे..?? और , जब तक उनसे सही तरीके से यह नहीं पूछा जाएगा तब तक आतंक का यह सिलसिला शायद निश्चिन्त होकर चलाया जाता रहेगा.. !! 

----अरविंद पाण्डेय