शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

यहाँ भी रात, सितारों से इश्क करती है.

शेक्सपीयर की मिरांडा 

तुम्हें  निहारने को खिल के हंस रहे हैं गुल .
गुलों के दिल का  कुछ ख़याल तो करना होगा.
मेरे लिए न सही, मैं तो यूँ ही कहता हूँ.
तुम्हें इनके ही लिए अब यहाँ आना होगा.

सुबह यहाँ भी तो मदहोश हवा बहती है.
सुबह यहाँ भी शम्स आसमां पे खिलता है.
यहाँ भी रात, सितारों से इश्क करती है.
यहाँ भी शाम से शर्मा के चाँद मिलता है.

तुम्हारे दिल सा  समंदर यहाँ लहराता है.
तुम्हारे हुस्न सी हसीं यहाँ  फिजाएं हैं.
तुम्हारी ज़ुल्फ़ सा महका हुआ चमन भी है.
तुम्हीं सी शोख यहाँ रुत की कुछ अदाएं हैं.

--- अरविंद पाण्डेय 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आत्मीय कविता, एक एक पंक्ति कुछ कहती है, सुन्दर रचना के लिए आपका आभार.

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  2. It's very well composed with very meaningful theme that is worth reading times & again with full of appreciation.Thanks a lot for sharing it with me.

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