शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ये जिस्म है लिबास,इस लिबास से क्या इश्क


ये  जिस्म  है लिबास , इस लिबास से क्या इश्क .
ये आज साफ़ है तो कल हो जाएगा खराब.
जो इसको पहनता है वो है रूहे   - कायनात ,
मुझको तो मुहब्बत , बस उसी रूह से हुई.. 


----अरविंद पाण्डेय

9 टिप्‍पणियां:

  1. jism hai libaas, , sach hai, muhobbat to rooh se hi hoti hai/honi chahiye.

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  2. मुझको तो मुहब्बत , बस उसी रूह से हुई.. nice

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  3. मुझको तो मुहब्बत उस रूह से हुई ...क्या सुफिअना खयाल है ...
    आपके उच्च चारित्रिक गुण अनुसरण करने योग्य हैं

    अरविन्द भाई ..बहन कह कर आपने सम्मान दिया ...बहुत आभार ...

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  4. ur words r the real theme of Bhagwat Geeta..ISS jism se kya ishq , ishq to rooh se honi chahiye...aatma amar hai jism nahi...mai rooh se prem karta hu taki mera prem bhi amar rahe....wah sir wah...

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  5. { कायनात ,मुझको तो मुहब्बत ,
    बस उसी रूह से हुई.. }

    उलझी हुई हूँ इस नज़्म में
    कई बार लिखी और मिटाई
    लफ्ज़ टिप्पणी में बैठते ही नहीं
    बस !! सर झुका के
    इस नज़्म को अदाप करती हूँ ..!!!

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  6. apne ye do line bol kar mujhe kabir ki jyo ki tyo rakh dinhi chadria ki yaad dila di. nice

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  7. रूहानियत खुशबू पाकर लगा कि मेरा इश्क... जो कि रूह से है ..सही है ..सही है..सही है ..
    आभार...

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  8. रूहानियत खुशबू पाकर लगा कि मेरा इश्क... जो कि रूह से है ..सही है ..सही है..सही है ..
    sir mai jab bhi apke likhe sabdo ko padhta hun mujhe ek ajib si shanti milti hai

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