गुरुवार, 25 मार्च 2010

श्री कृष्ण को सर्वव्यापी अक्षरतत्त्व के रूप मे जानना ही ज्ञान है


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम ..
विवस्वान मनवे प्राह मनुरिक्श्वाकवेsब्रवीत 

इस श्लोक के बारे मे मेरे एक मित्र ने प्रश्न किया कि जब श्री कृष्ण का प्राकट्य सूर्य के बाद हुआ था तब उन्होंने गीता मे कैसे कहा कि कर्मयोग का उपदेश उनके द्वारा सर्व प्रथम विवस्वान अर्थात सूर्य को दिया गया था..

गीता में श्री कृष्ण जब 'मैं' ' मेरा' आदि शब्दों का प्रयोग अपने लिए करते हैं तब उस शब्द का वही अर्थ नहीं होता जो सामान्य स्थितियों मे होता है ..

श्री भगवान् ने जब कहा कि इस '' कर्म योग '' का उपदेश मैंने सर्व प्रथम विवस्वान को किया तब वे यह नहीं कह रहे कि वह उपदेश उन्होंने '' कृष्ण नामधारी '' अवतार के रूप मे ही किया था..
इस प्रश्न के दो स्वरुप हैं .
प्रथम --
जब श्री कृष्ण का जन्म सूर्य अर्थात विवस्वान के जन्म के बाद हुआ तब उन्होंने सूर्य को कर्मयोग का उपदेश कैसे किया ?
द्वितीय 
यदि श्री कृष्ण के रूप मे उन्होंने यह उपदेश नहीं किया तब किसने विवस्वान को यह उपदेश किया ??
श्री ब्रह्मा जी के मानस-पुत्र महर्षि मरीचि थे .. मरीचि से महर्षि कश्यप का जन्म हुआ .. कश्यप जी और उनकी पत्नी अदिति से विवस्वान का जन्म हुआ था. 
विवस्वान से वैवस्वत मनु हुए ..
विवस्वान अर्थात सूर्य का भौतिक शरीर वही है जो हमें आकाश मे निरंतर दिखाई देता है..
इन्ही की परम्परा में इक्ष्वाकु का भी जन्म हुआ था जो श्री राम के पूर्व पुरुष थे..
श्री राम को भी सूर्यवंशी इसीलिये कहा जाता है..
श्री भगवान ने गीता के तृतीय अध्याय मे प्रथम बार ''मै''शब्द का प्रयोग इस श्लोक में किया है --
'' न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन .''
पुनः,इसी अध्याय मे श्री भगवान कहते है -- 
'' उत्सीदेयुरिमे लोकाः न कुर्याम कर्म चेदहम .
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्याम इमाम प्रजाः...''
इस श्लोक मे प्रथम बार श्री कृष्ण अपने सर्वव्यापी स्वरुप का उल्लेख करते हैं.. इसमे वे स्पष्ट कहते है कि यदि मै कर्म न करू तो सारी सृष्टि नष्ट हो जायेगी ..
यदि श्री कृष्ण को वासुदेव पुत्र के रूप मे मात्र वर्तमान मे अस्तित्वशाली माना जाय और तब यह श्लोक पढ़ा जाय तो यह कैसे कहा जा सकलता है कि यदि वे कर्म न करें तो सारी सृष्टि नष्ट हो जायेगी.. 
यह तभी कहा जा सकता जब यह पूर्वधारणा की जाय कि श्री कृष्ण सर्वव्यापी सर्वप्राण परमात्मा है और यदि वे निष्क्रिय हो जायेगे तो सृष्टि भी निष्क्रिय हो जायेगी .
श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी के रूप मे सूर्य को इसी अखंड कर्म योग का उपदेश किया था और यही कारण है कि सूर्य भी सारी सृष्टि के प्राण है..
विज्ञान के अनुसार भी यदि सूर्य रूक जाय , सूर्य बुझ जाय तो सौरमंडल के सभी गृह जीवन विहीन हो जायेगे..
अतः श्री कृष्ण द्वारा महाविष्णु नाभिकमल से उत्पन्न श्री ब्रह्मा के रूप मे , सूर्य को गीता मे उल्लिखित '' कर्मयोग '' की दीक्षा दी गयी थी.. 
और इसी तथ्य का उल्लेख उन्होंने गीता के चतुर्थ अध्याय के प्रथम श्लोक मे किया है ..
श्री कृष्ण के '' मै '' को जान लेने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता..
उन्होंने स्पष्ट कहा है ..
यो माम् पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति.
तस्याहं न प्रणश्यामि, स च मे न प्रणश्यति ..
श्री कृष्ण को सर्वव्यापी अक्षर तत्त्व के रूप मे जानना ही शुद्ध ज्ञान है और यही जीवन का परम लक्ष्य है..

----अरविंद पाण्डेय

5 टिप्‍पणियां:

  1. Excellent !!!!!good piece of information !!!!! Jia shree krishna !!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. परम आदरणीय सर ,आपने जो भी लिखा है ,वह अटल सत्य है ....मैं भी मानता हूँ क़ि शुद्ध ज्ञान ही जीवन का परम लक्ष्य है.. और हमेशा ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रयाशरत रहता हूँ , ज्ञान से बड़ा धन तो कुछ है भी नहीं , परन्तु भौतिक सुख में खोये हुए लोग हमको मुर्ख कहते हैं , मुझे उस समय बड़ी ख़ुशी होती है क़ि चलो अगला हमको मुर्ख ही समझता रहे ! मैं एक पूर्ण रूप से अपने जीवन से संतुष्ट हूँ क़ि मैं क्या हूँ ! क्योंकि हमारे जैसे व्यक्ति क़ि यह स्पष्ट समझ है क़ि ज्ञान ही जीवन का सबसे बड़ा धन्य और शक्ति है ! बस ज्ञान देते रहिएगा , ये ही आपसे प्रार्थना है ........सादर !!!!! जय श्री कृष्णा !!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. श्री कृष्ण को सर्वव्यापी अक्षर तत्त्व के रूप मे जानना ही शुद्ध ज्ञान है और यही जीवन का परम लक्ष्य है..
    सूर्य को कर्मयोग की शिक्षा दिया जाना नयी जानकारी है ...इस ज्ञान वर्धन के लिए आभार ...!!

    जवाब देंहटाएं
  4. I was astonished to find Sri Arvind Pandey,I.P.S. as a versatile singer, actor ,poet & author of several books of repute. All these traits combine in one is seldom found in one whereas Sri Pandey is an exception to it .He is widely known for his passion & wisdom that is matter. of great pride for all of us who know him closely.. .His book ‘Swapan & yatharth" in Hindi is so beautifully composed and nicely authored in poetic form that any body who has gone through it would like to read it again & again It’s a very good work of Sri Pandy that is worth commending and recommending to all Principals of Higher Secondary Schools & Colleges to have publication of his books in their library for studies of students & teachers alike. He writes very well and has command over Hindi, Sanskrit & English languages.He has also command over two epics ‘Sri Ram Charit Manas” & Shrimad Bhagwat ‘besides “Vedas” &” Puran”. .It is really matter of pride to know him who is a real genius, generous and has distinguished personality. Besides being gentleman –at all -times. Let us pray and wish him all success in his very long, happy & blissful life!

    जवाब देंहटाएं

आप यहाँ अपने विचार अंकित कर सकते हैं..
हमें प्रसन्नता होगी...