रविवार, 3 मई 2009

तुम मेरे सपनों की सीमा ...



मैं तुम्हारी देह को , खुशबू बनूँ , फ़िर छू के महकूँ ,
मैं तुम्हारे ह्रदय को, संगीत बन , , छूकर के बहकूँ ,

अब यही सपना मेरी आंखों में
हर पल तैरता है ,


तुम मेरे सपनों की सीमा
पर तुम्हें क्या ये पता है


----अरविंद पाण्डेय