सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

महाशिवरात्रि : उमा-महेश्वर का विवाह-दिवस ..


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शंकर अपने सज धज करके आज चले ससुराल
भूत- प्रेत सब बने बराती, लगते हैं विकराल

सब देवों के बीच विष्णु , ब्रह्मा की शोभा कौन कहे
पीछे इन्द्र , कुबेर , वरुण से देव खुशी में झूम रहे


उनके पीछे भूत - प्रेत - वेताल मंडली नाच रही
किसी का डमरू डिम डिम करता, किसी की भेरी गूँज रही


किसी प्रेत को आँख नही कोई दस दस आंखों वाला
हर कोई बस झूम रहा है मस्ती में हो मतवाला


शंकर अपने सज धज करके आज चले ससुराल .


पञ्च-मुखी की पन्द्रह आँखों में काजल काल का

दस हांथों में अभय , शूल औ' भिक्षा-पात्र कपाल का


चंदन के बदले शरीर पर चिता-भस्म है लगी हुई

गले में है रुद्राक्ष और सर्पों की माला सजी हुई


माथे पर है चन्द्र , तिलक सी लगे तीसरी आँख है
कमर में बाघम्भर ,हाथों में डमरू और पिनाक है


शंकर अपने सज धज करके आज चले ससुराल .....


कानो में कुंडल के बदले सर्प लटकते हैं जिनके

सिर पर काली जटा जूट में गंगा बहती हैं जिसके


गले में नरमुंडों की माला गंगा-जल से भीग रही

नंदी जी पर हैं सवार अद्भुत शोभा ना जाय कही



भक्तों को वर अभय दे रहे आशुतोष भगवान हैं

शिव-बरात की कथा सुने, उसका होता कल्याण है



शंकर अपने सज धज करके आज चले ससुराल ...

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यह भक्ति-गीत मेरे द्वारा २००३ में लिखा गया था ।

यह शिव-पुराण पर आधारित है । शिव-पुराण के अध्याय

में ४० जगन्माता पार्वती और

जगत्पिता शिव के विवाह का वर्णन है । यह गीत , बरात

के समय शिव-पुराण के शिव-स्वरुप-वर्णन की शाब्दिक-छाया है ।

सभी शिव-भक्त जानते हैं कि माता पार्वती ने अति-कठोर तप किया था अपने

परम-प्रिय शिव को प्राप्त करने के लिए ।

इसी क्रम में ६ महीने तक उन्होंने शाक-पत्र खाना भी

छोड़ दिया था . इसीलिये माता पार्वती का नाम "अपर्णा " भी विख्यात हुआ ।

कालिदास ने शिव-तपस्या भंग करने का प्रयास करने वाले

कामदेव के भस्म होने और उस समय माता पार्वती का अपने

अद्वितीय सौन्दर्य के निष्फल हो जाने पर उसकी निंदा करने का विलक्षण वर्णन

"कुमार संभवं " में किया है । सौन्दर्य की जो परिभाषा कालिदास

ने इस श्लोक में की , उसे ही दूसरे शब्दों में , अंगरेजी के महान कवियों

-पी .बी.शेली , जान कीट्स आदि ने बाद में प्रस्तुत किया -

"तथा समक्षं दहता मनोभवं

पिनाकिना भग्नमनोरथा सती

निनिन्द रूपं हृदयेन पार्वती

प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता "


उमा-महेश्वर विवाह प्रकरण का स्वाध्याय करने से किसी प्रेयसी-कन्या

को उसके प्रिय से विवाह का निर्विघ्न अवसर प्राप्त होता है । यह फल-श्रुति

शिव-पुराण में वर्णित है । अविवाहिता यदि इसका स्वाध्याय करे

तो उसे शिव-कृपा-प्राप्त सुंदर और योग्य वर प्राप्त होता है -यह

प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है ।

वीनस म्यूजिक कंपनी द्वारा

इसे नंदिता के एल्बम 'शिव जी हो गए दयालु 'में सम्मिलित करते हुए २००३ में

रिलीज़ किया गया था ।

इस गीत को मेरी पुत्री नंदिता ने गाया था और मैंने भी इसमें अपना स्वर

दिया था।

----अरविंद पाण्डेय

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

इश्क था, बस इश्क था, बस इश्क था उस पल वहाँ..


आज मैनें ख्वाब में देखा तुझे
फूल सी पलकें तेरी भीगी हुई

मैं तेरी जानिब ये घुटने टेक कर
हाथ को कदमों पे तेरे रख दिया

फ़िर करम तूने किया कुछ इस तरह
हाथ में अपने , मेरे हाथों को ले

खींच कर हलके से, मुझको प्यार में
बाजुओं में इस तरह कुछ, भर लिया

मैं तेरे रुखसार के नज़दीक था
देखता पलकें तेरी भीगी हुई

तेज़ साँसों से तेरी खुशबू निकल
मेरे तनमन में समाई जा रही

सुर्ख गालों पर तेरे ढलते हुए
शबनमी उन आंसुओं को पी गया

क्या कहूं उस एक पल के दौर में
इश्क की लाखों सदी मैं जी गया

फ़िर तेरा आगोश, बस, कसता गया
और कुछ बाकी न था उस पल वहाँ

मैं नही था, तू न थी , ना ये ज़मीन , ना आसमां
इश्क था, बस इश्क था, बस इश्क था उस पल वहाँ

----अरविंद पाण्डेय