मंगलवार, 20 जनवरी 2009

विश्वास सर्व-व्यापक है, विभु..


Get this widget Track details eSnips Social DNA

विश्वास , श्वास का प्रकृत-रूप ,
यह अन्तरतम की लय-झंकृति
स्रष्टा से इसका साम्य और
स्रष्टा की यह सुन्दरतम कृति

विश्वास, विभाजक-रेखा ,वह
जो पशु - मनुष्य में करे भेद
विश्वास-युक्त जो ,वह मनुष्य
विश्वास- हीन, पशु में अभेद

विश्वास अगर, तो अन्धकार
भी बन जाता उज्जवल प्रकाश
विश्वास अगर तो तीक्ष्ण वेदना
बन जाती उन्मुक्त हास

विश्वास अगर तो पुष्प कंटकित,
दिखता है सुरभित , सुंदर
विश्वास अगर, श्री कृष्ण-सदृश
दिखता है यह नीला अम्बर

विश्वास अगर तो केशराशि
प्रिय की प्रतीत होती सुरभित
विश्वास अगर तो क्षुद्र-देह
में भी अनंतता की प्रतीति

विश्वास
वही जब श्वास श्वास में
छलक उठे प्रिय की सुगंध
आकर्षण इतना प्रबल कि
सारे,छिन्न भिन्न हो जांय, बंध

विश्वास वही जब लैला भी
बस दिखे अप्सरा सी सुंदर
क्षण-जीवी पुरूष दिखे नारी को
कालजयी एवं ईश्वर

विश्वास वही जो धरती पर ही
रच दे स्वर्णिम स्वर्ग - सरणि
विश्वास वही जब धूमकेतु भी
हो प्रतीत ज्यों तरुण तरणि

विश्वास शक्ति, विश्वास भक्ति
विश्वास ,सर्व-सत्तामय प्रभु
विश्वास एक आराध्य देव
विश्वास सर्व-व्यापक है ,विभु


----अरविंद पाण्डेय

2 टिप्‍पणियां:

  1. YOUR ARE Absolutely RIGHT SIR, BECAUSE ABRAHAM LINCON SAID THAT “ Believing everybody is dangerous; believing nobody is very dangerous …..

    जवाब देंहटाएं
  2. हिन्दी सिखाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर - आमोद कुमार

    जवाब देंहटाएं

आप यहाँ अपने विचार अंकित कर सकते हैं..
हमें प्रसन्नता होगी...