बुधवार, 31 दिसंबर 2008

आइए , करें आराधन हम नव -वर्ष में...

जनवरी २००९
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आइए करें आराधन हम नव -वर्ष में ,
हिमगिरि की अखंड - गरिमा का ,
अम्बर की अनंत - महिमा
का ,
पक्षी के कलरव से गुंजित
स्वर्णप्रभा - मंडित प्रभात का ,

किन्तु रहे यह ध्यान हमें ---

इस जीवन का एक वर्ष फिर फिसल गया ।

क्या बीते वर्षों में हमने वही किया जो करना था ?
क्या हमने जो
लिए फैसले ,
वे उतरेंगे खरे , समय की
शाश्वत कठिन कसौटी पर .?

क्या हमने जो रचे जाल शब्दों , वाक्यों के ,
वे थे दीपित सतत - सत्य से , महिमा से , ऊर्जा से ?

यदि हाँ , तो फिर एक वर्ष ही नहीं ,
इस जीवन का प्रतिपल होगा सुरभित , सुन्दर ,
उत्सव से , ऊर्जा से ..


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अरविंद पाण्डेय

सोमवार, 29 दिसंबर 2008

यदि तुम मेरे आलिंगन में मुग्ध नही हो..

तटिनी के तरंग - मंडल में
परम - तृप्ति पाता है निर्झर
सिन्धु - समालिंगन से पुलकित
आप्त - काम होती पयस्विनी

सहज मृदुल अन्योन्य - घात से
स्वर्पवने परिनंदित होतीं
संसृति के समस्त बिम्बों का
जीवन ही सापेक्ष - सत्य है

संसृति में प्रतिपल संगम से
सकल वस्तुए मत्त हो रहीं
ईश्वरीय यह विधि, शाश्वत ,
पर विप्रयुक्त , हा, हंत हमीं हैं

देख , स्वर्ग के आलिंगन से
परिशिखरी -पशु -दल पुलकित है
आनंदित ये जलधि -वीचियाँ
आलिंगन कर रहीं परस्पर

कलिकाओं का ह्रदय प्रफुल्लित
पुष्पों का सम्मान कर रहा
अवनि - वक्ष का परिस्पर्श कर
सूर्य - रश्मियाँ नृत्य - निरत हैं

शशि - मयूख सहसा ही आकर
जलधि - चुम्ब कर रही निरंतर
किंतु , निरर्थक , यदि तुम मेरे
आलिंगन में मुग्ध नही हो ।
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यह कविता महान अंगरेजी कवि
पी बी शेली की कविता " LOVE'S PHILOSOPHY "
पर आधारित है । यह मैंने वर्ष १९८८५ में
लिखी थी जब मैं B.A. का विद्यार्थी था ।

हिन्दी कविता की जो दुर्दशा इस समय हो रही
वह अत्यन्त कारुणिक है । छंद - मुक्त कविता
का प्रारंभ श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने किया था
तो उनकी लेखनी में ऐसी शक्ति थी कि वह छंद - मुक्त
होते हुए भी कविता में रस - पूर्ण सौन्दर्य और गेयता बनाए
रखती थी । परन्तु आज हिदी कविता को उस स्तर पर
ला दिया गया है कि इस समय रामधारी सिंह दिनकर ,
महादेवी वर्मा , सुमित्रानंदन पन्त, हरिवंश राय बच्चन जैसे
कवि अनुपलब्ध हो चुके हैं ।
उर्वशी की सौन्दर्य - धारा और कुरुक्षेत्र के प्रचंड - पौरुष से
परिपूर्ण कविता की गंगा प्रवाहित करने वाले दिनकर
आज स्मृति - शेष हैं ।
इस स्थिति में मेरा प्रयास है की हिन्दी कविता प्रेमी
उस स्वर्ण युग की स्मृतियों से आनंदित हों जब हिदी
कविता विश्व की समस्त भाषाओं और साहित्य की गंगोत्री -
संस्कृत - कविता से अनुप्राणित और अनुसिंचित होती
अपने स्वर्ण - शिखर पर विराजमान होकर रस - धारा प्रवाहित
कर रही थी ।




---अरविंद पाण्डेय

रविवार, 28 दिसंबर 2008

तू समझना मैंने तुझे चुपके से छुआ है..

ये कुरबतें ये दूरियां तो दिल की जानिब हैं
दिल है करीब तो करीब , दूर है तो दूर ,

दिल में तेरे जो बात मेरी याद से उठे
तू समझना मैंने करीब होके कुछ कहा

गर ,सामने महका हुआ इक गुल दिखाई दे
तू समझना वो महक मेरे दिल से उठी है

गर , मनचला सा कोई झकोरा हवा का हो
तू समझना बेताब मेरा दिल मचल उठा

गर, आसमां में चाँद , कुछ शर्मा के खिला हो ,
तू समझना मैंने तुझे चुपके से छुआ है

जब तू नही हो पास तो कुछ और पास से ,
दिल , दिल से मरासिम हो -यही मेरी दुआ है



----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

तुम मेरे दिल से गुजरना ..



तुम मेरे दिल से गुजरना
जब कभी मायूस होना
ये तुम्हारे पाँव का
मुझ पर बड़ा एहसान होगा ।

ये मेरी साँसे अभी, अक्सर
बड़ी बोझिल सी लगतीं
इनका आना और जाना
कुछ ज़रा आसान होगा ।

----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए ..




तुम रखा करते हो अक्सर,जिनके सर सोने का ताज
कह रहा है मुल्क उनका सर कुचलना चाहिए

हो जिन्हें अब फिक्र अपनी औ ' वतन के शान की
सोनेवाले उन सभी को जाग उठाना चाहिए

दिल में हो ईमान ,बाजू में हो लोहे की खनक
ऐसे ही रहवर के सर पर ताज रखना चाहिए

जिनके आगे तुम खड़े हो सर झुकाए , कांपते
उनका सर , फांसी के फंदे पर लटकाना चाहिए

आज जिनके सर की कीमत सिर्फ़ कौडी भर बची
उनके आगे अब कभी ये सर झुकना चाहिए

इक तरफ़ हो घुप अँधेरा इक तरफ़ दरिया- ए- नूर
अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए


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अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में....




तू नही वह देह जिसको खोजता मै
 देह हैं बिखरी हुई संसार में

तू महक मदमस्त फूलों की , जिसे पाना कठिन है
 तू चमक उस दामिनी की जिसका बुझ पाना कठिन है

तू वसंती वायु जिसका असर अब जाना कठिन है
 तू ग़ज़ल कोयल की जिसके सुर भुला पाना कठिन है

तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में ,
 बंद है अब द्वार सारे , अब तेरा जाना कठिन है ..


----अरविंद पाण्डेय

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

कब तलक जीतोगे तुम,हारेगा जब हिन्दोस्तां--






कब तलक जीतोगे तुम , हारेगा जब हिन्दोस्तां,
अब तो पौरुष की प्रबल ज्वाला भडकनी चाहिए।

कल तलक जो भीड़ के सिरमौर बनकर थे खड़े ,
अब भी अखबारों में वो तस्वीर दिखनी चाहिए ।

दिव्य भारत भूमि की जिस कोख ने हमको जना,
कुछ करो - उस कोख की तो लाज बचनी चाहिए ।

जिस ज़मीं का जल, रगों में खून बन कर बह रहा ,
उस ज़मी की, खाक में, इज्ज़त न मिलनी चाहिए ।

जो वतन की रहजनी के ख़ुद ही जिम्मेदार हैं ,
उनके ऊपर सुर्ख आँखें, अब तो, तननी चाहिए ।

जो शहीदों की शहादत का करें सौदा कभी,
उनके आगे अब कभी आँखें न झुकनी चाहिए ।

आज जो खामोश हैं वो कल भरेंगें सिसकियाँ ,
इसलिए, हर शख्स की बाहें फडकनी चाहिए।

बात जो हिंदुत्व की , इस्लाम की , करते बड़ी
उनके पाखंडी जेहन की पोल खुलनी चाहिए ।

शक्ल इंसानी , मगर दिल है किसी शैतान का
उन रुखों की असलियत, दुनिया को दिखनी चाहिए ।

बह गया पौरुष सभी देवों का फ़िर से एक बार ,
अब , ज़मीं पर फ़िर कोई दुर्गा उतरनी चाहिए ।
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मुझे याद आ रहा है कारगिल युद्ध --जब कारगिल
के कातिलोंको , देशभक्त होने का दावा करने वालों
ने , बहत्तर घंटे तक , भाग जाने का खुला
रास्ता देकर , कारगिल के पाँच सौ से अधिक
शहीदों की शहादत का अपमान किया था --
मुझे याद आ रहा है वह दिन, जब एक
अरब की जनसंख्या वाल्रे इस देश के
रहनुमाओं ने कंधार , जाकर देश पर हमला
कराने और करने वालो को मुक्त किया था ।
वही लोग दाउद को सौपने की मांग कर रहे हैं ।
मगर , क्याये नेता इस बात की गारंटी देंगें
कि ये फ़िर दाउद को लाहौर या कंदहार
जाकर नही छोड़ आयेंगे ? भारत के वे
सभी वाक्पटु और टी.वी. स्टार के रूप में
पहचाने जाने नेता
टी.वी. के परदे से गायब हैं ।
आतंकवादियों के साहस और शौर्य से हतप्रभ
ये लोग शायद ख़ुद के बारे में ज़्यादा
सोच रहे है कि कौन सी राजनीति करे
कि हम भारत के लोग , इनसे वह सवाल
करना भूल जाय
जो अभी एकस्वर से कर रहे हैं ।
पर ये सभी जान रहें हैं कि युद्ध अभी कुछ
देर के लिए ही
रुका या रोका गया है ।
इसलिए शायद इन्हें यह सद्बुद्धि आए कि ये लोग
वह सब करने से बचेंगें जो करने की
इनकी आदत रही है ।
शहीद हेमंत करकरे की पत्नी और शहीद संदीप
उन्नीकृष्णन के पिताने देश को बताया है
कि अपनी कुर्सी के लिए देश के मूल्यों
की ह्त्या करने वालों को अगर दंड नही दे सकते
तो उनसे न मिलकर, ये बता सकते हैं कि आप
किसी शहीद को सम्मानित करने के योग्य नही ।
हिंदुत्व का पुरोधा होने का दावा , दिखावा करने
वाले नरेंद्र मोदी को यह भी नही मालूम
कि किसी हिंदू के घर , अकाल मृत्यु
होने पर , उस दुर्घटना में विधवा हुई स्त्री के
पास एक करोड़ रूपया लेकर जाना और तब
उसे सांत्वना देना शास्त्र-विरुद्ध
आचरण है ।
मगर यह सब हो रहा है । तो आइये एक नए भारत
निर्माणके लिए कुछ नया चिंतन करे ।
नया सृजन करें ।
शुद्ध और सशक्त विचारों से एक नया रास्ता बनाए ।



---- अरविंद पाण्डेय