बुधवार, 31 दिसंबर 2008

आइए , करें आराधन हम नव -वर्ष में...

जनवरी २००९
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आइए करें आराधन हम नव -वर्ष में ,
हिमगिरि की अखंड - गरिमा का ,
अम्बर की अनंत - महिमा
का ,
पक्षी के कलरव से गुंजित
स्वर्णप्रभा - मंडित प्रभात का ,

किन्तु रहे यह ध्यान हमें ---

इस जीवन का एक वर्ष फिर फिसल गया ।

क्या बीते वर्षों में हमने वही किया जो करना था ?
क्या हमने जो
लिए फैसले ,
वे उतरेंगे खरे , समय की
शाश्वत कठिन कसौटी पर .?

क्या हमने जो रचे जाल शब्दों , वाक्यों के ,
वे थे दीपित सतत - सत्य से , महिमा से , ऊर्जा से ?

यदि हाँ , तो फिर एक वर्ष ही नहीं ,
इस जीवन का प्रतिपल होगा सुरभित , सुन्दर ,
उत्सव से , ऊर्जा से ..


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अरविंद पाण्डेय

सोमवार, 29 दिसंबर 2008

यदि तुम मेरे आलिंगन में मुग्ध नही हो..

तटिनी के तरंग - मंडल में
परम - तृप्ति पाता है निर्झर
सिन्धु - समालिंगन से पुलकित
आप्त - काम होती पयस्विनी

सहज मृदुल अन्योन्य - घात से
स्वर्पवने परिनंदित होतीं
संसृति के समस्त बिम्बों का
जीवन ही सापेक्ष - सत्य है

संसृति में प्रतिपल संगम से
सकल वस्तुए मत्त हो रहीं
ईश्वरीय यह विधि, शाश्वत ,
पर विप्रयुक्त , हा, हंत हमीं हैं

देख , स्वर्ग के आलिंगन से
परिशिखरी -पशु -दल पुलकित है
आनंदित ये जलधि -वीचियाँ
आलिंगन कर रहीं परस्पर

कलिकाओं का ह्रदय प्रफुल्लित
पुष्पों का सम्मान कर रहा
अवनि - वक्ष का परिस्पर्श कर
सूर्य - रश्मियाँ नृत्य - निरत हैं

शशि - मयूख सहसा ही आकर
जलधि - चुम्ब कर रही निरंतर
किंतु , निरर्थक , यदि तुम मेरे
आलिंगन में मुग्ध नही हो ।
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यह कविता महान अंगरेजी कवि
पी बी शेली की कविता " LOVE'S PHILOSOPHY "
पर आधारित है । यह मैंने वर्ष १९८८५ में
लिखी थी जब मैं B.A. का विद्यार्थी था ।

हिन्दी कविता की जो दुर्दशा इस समय हो रही
वह अत्यन्त कारुणिक है । छंद - मुक्त कविता
का प्रारंभ श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने किया था
तो उनकी लेखनी में ऐसी शक्ति थी कि वह छंद - मुक्त
होते हुए भी कविता में रस - पूर्ण सौन्दर्य और गेयता बनाए
रखती थी । परन्तु आज हिदी कविता को उस स्तर पर
ला दिया गया है कि इस समय रामधारी सिंह दिनकर ,
महादेवी वर्मा , सुमित्रानंदन पन्त, हरिवंश राय बच्चन जैसे
कवि अनुपलब्ध हो चुके हैं ।
उर्वशी की सौन्दर्य - धारा और कुरुक्षेत्र के प्रचंड - पौरुष से
परिपूर्ण कविता की गंगा प्रवाहित करने वाले दिनकर
आज स्मृति - शेष हैं ।
इस स्थिति में मेरा प्रयास है की हिन्दी कविता प्रेमी
उस स्वर्ण युग की स्मृतियों से आनंदित हों जब हिदी
कविता विश्व की समस्त भाषाओं और साहित्य की गंगोत्री -
संस्कृत - कविता से अनुप्राणित और अनुसिंचित होती
अपने स्वर्ण - शिखर पर विराजमान होकर रस - धारा प्रवाहित
कर रही थी ।




---अरविंद पाण्डेय

रविवार, 28 दिसंबर 2008

तू समझना मैंने तुझे चुपके से छुआ है..

ये कुरबतें ये दूरियां तो दिल की जानिब हैं
दिल है करीब तो करीब , दूर है तो दूर ,

दिल में तेरे जो बात मेरी याद से उठे
तू समझना मैंने करीब होके कुछ कहा

गर ,सामने महका हुआ इक गुल दिखाई दे
तू समझना वो महक मेरे दिल से उठी है

गर , मनचला सा कोई झकोरा हवा का हो
तू समझना बेताब मेरा दिल मचल उठा

गर, आसमां में चाँद , कुछ शर्मा के खिला हो ,
तू समझना मैंने तुझे चुपके से छुआ है

जब तू नही हो पास तो कुछ और पास से ,
दिल , दिल से मरासिम हो -यही मेरी दुआ है



----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

तुम मेरे दिल से गुजरना ..



तुम मेरे दिल से गुजरना
जब कभी मायूस होना
ये तुम्हारे पाँव का
मुझ पर बड़ा एहसान होगा ।

ये मेरी साँसे अभी, अक्सर
बड़ी बोझिल सी लगतीं
इनका आना और जाना
कुछ ज़रा आसान होगा ।

----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए ..




तुम रखा करते हो अक्सर,जिनके सर सोने का ताज
कह रहा है मुल्क उनका सर कुचलना चाहिए

हो जिन्हें अब फिक्र अपनी औ ' वतन के शान की
सोनेवाले उन सभी को जाग उठाना चाहिए

दिल में हो ईमान ,बाजू में हो लोहे की खनक
ऐसे ही रहवर के सर पर ताज रखना चाहिए

जिनके आगे तुम खड़े हो सर झुकाए , कांपते
उनका सर , फांसी के फंदे पर लटकाना चाहिए

आज जिनके सर की कीमत सिर्फ़ कौडी भर बची
उनके आगे अब कभी ये सर झुकना चाहिए

इक तरफ़ हो घुप अँधेरा इक तरफ़ दरिया- ए- नूर
अब वतन में ये तमाशा बंद होना चाहिए


----
अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में....




तू नही वह देह जिसको खोजता मै
 देह हैं बिखरी हुई संसार में

तू महक मदमस्त फूलों की , जिसे पाना कठिन है
 तू चमक उस दामिनी की जिसका बुझ पाना कठिन है

तू वसंती वायु जिसका असर अब जाना कठिन है
 तू ग़ज़ल कोयल की जिसके सुर भुला पाना कठिन है

तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में ,
 बंद है अब द्वार सारे , अब तेरा जाना कठिन है ..


----अरविंद पाण्डेय

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

कब तलक जीतोगे तुम,हारेगा जब हिन्दोस्तां--






कब तलक जीतोगे तुम , हारेगा जब हिन्दोस्तां,
अब तो पौरुष की प्रबल ज्वाला भडकनी चाहिए।

कल तलक जो भीड़ के सिरमौर बनकर थे खड़े ,
अब भी अखबारों में वो तस्वीर दिखनी चाहिए ।

दिव्य भारत भूमि की जिस कोख ने हमको जना,
कुछ करो - उस कोख की तो लाज बचनी चाहिए ।

जिस ज़मीं का जल, रगों में खून बन कर बह रहा ,
उस ज़मी की, खाक में, इज्ज़त न मिलनी चाहिए ।

जो वतन की रहजनी के ख़ुद ही जिम्मेदार हैं ,
उनके ऊपर सुर्ख आँखें, अब तो, तननी चाहिए ।

जो शहीदों की शहादत का करें सौदा कभी,
उनके आगे अब कभी आँखें न झुकनी चाहिए ।

आज जो खामोश हैं वो कल भरेंगें सिसकियाँ ,
इसलिए, हर शख्स की बाहें फडकनी चाहिए।

बात जो हिंदुत्व की , इस्लाम की , करते बड़ी
उनके पाखंडी जेहन की पोल खुलनी चाहिए ।

शक्ल इंसानी , मगर दिल है किसी शैतान का
उन रुखों की असलियत, दुनिया को दिखनी चाहिए ।

बह गया पौरुष सभी देवों का फ़िर से एक बार ,
अब , ज़मीं पर फ़िर कोई दुर्गा उतरनी चाहिए ।
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मुझे याद आ रहा है कारगिल युद्ध --जब कारगिल
के कातिलोंको , देशभक्त होने का दावा करने वालों
ने , बहत्तर घंटे तक , भाग जाने का खुला
रास्ता देकर , कारगिल के पाँच सौ से अधिक
शहीदों की शहादत का अपमान किया था --
मुझे याद आ रहा है वह दिन, जब एक
अरब की जनसंख्या वाल्रे इस देश के
रहनुमाओं ने कंधार , जाकर देश पर हमला
कराने और करने वालो को मुक्त किया था ।
वही लोग दाउद को सौपने की मांग कर रहे हैं ।
मगर , क्याये नेता इस बात की गारंटी देंगें
कि ये फ़िर दाउद को लाहौर या कंदहार
जाकर नही छोड़ आयेंगे ? भारत के वे
सभी वाक्पटु और टी.वी. स्टार के रूप में
पहचाने जाने नेता
टी.वी. के परदे से गायब हैं ।
आतंकवादियों के साहस और शौर्य से हतप्रभ
ये लोग शायद ख़ुद के बारे में ज़्यादा
सोच रहे है कि कौन सी राजनीति करे
कि हम भारत के लोग , इनसे वह सवाल
करना भूल जाय
जो अभी एकस्वर से कर रहे हैं ।
पर ये सभी जान रहें हैं कि युद्ध अभी कुछ
देर के लिए ही
रुका या रोका गया है ।
इसलिए शायद इन्हें यह सद्बुद्धि आए कि ये लोग
वह सब करने से बचेंगें जो करने की
इनकी आदत रही है ।
शहीद हेमंत करकरे की पत्नी और शहीद संदीप
उन्नीकृष्णन के पिताने देश को बताया है
कि अपनी कुर्सी के लिए देश के मूल्यों
की ह्त्या करने वालों को अगर दंड नही दे सकते
तो उनसे न मिलकर, ये बता सकते हैं कि आप
किसी शहीद को सम्मानित करने के योग्य नही ।
हिंदुत्व का पुरोधा होने का दावा , दिखावा करने
वाले नरेंद्र मोदी को यह भी नही मालूम
कि किसी हिंदू के घर , अकाल मृत्यु
होने पर , उस दुर्घटना में विधवा हुई स्त्री के
पास एक करोड़ रूपया लेकर जाना और तब
उसे सांत्वना देना शास्त्र-विरुद्ध
आचरण है ।
मगर यह सब हो रहा है । तो आइये एक नए भारत
निर्माणके लिए कुछ नया चिंतन करे ।
नया सृजन करें ।
शुद्ध और सशक्त विचारों से एक नया रास्ता बनाए ।



---- अरविंद पाण्डेय

रविवार, 23 नवंबर 2008

व्यर्थ के आकर्षणों से मुक्त जो राही ..



योजना ही मार्ग निष्कंटक बनाती है . 
लक्ष्य - केन्द्रित दृष्टि ही मंजिल दिलाती है ॥

व्यर्थ के आकर्षणों से मुक्त जो राही ..
विजय का आनंद पाता है सदा वह ही

---अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

खाक न हो खाकी की इज्ज़त..


खाक न हो खाकी की इज्ज़त
पियो न खादी की हाला

मित्र , न समझो पद कुर्सी को
मनमोहक साकी - बाला

देशभक्ति जब बने सुरा औ '
देश बने जब मदिरालय

तब, खाकी खादी को मधु से
तृप्त करेगी मधुशाला


---अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 12 नवंबर 2008

जियो तो ऐसे जियो कि जिससे लोग तुम्हारा मान करें..

हम बिहार के नौजवान हैं
हम भारत की आन बान हैं

बारूदों से भरी राह पर
हम बेफिक्र बढे जाएँ

हम कांटो का हार बनाकर
इक दूजे को पहनाएं

जन जन की रक्षा को हम सब
अपना तन मन धन खोये

हम जगते रातों को जिससे
सुख की नींद सभी सोयें

हम मिट जाँय मगर विजयी हो
अमर बिहार महान

आज हम सभी तुम्हे दे रहे
अपना यह पैगाम

जियो तो ऐसे जियो कि जिससे
लोग तुम्हारा मान करें

मरो तो ऐसे मरो , तुम्हारे लिए
ये दुनिया आह भरे

जिस मिट्टी में जनम लिया है
जिस माता का दूध पिया है
जिस कूएं ने प्यास बुझाई
क्या , कुछ तुमने उसे दिया है

हम बिहार के नौजवान हैं
हम भारत की आन बान हैं

---अरविंद पाण्डेय

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

सत्य -दीप जन जन में, प्रतिपल जला करे.


ज्ञान का प्रकाश हो,
चित्त का विकास हो ।


दैवी- संपत्ति का
मानव में वास हो ।


स्वाभिमान से सबका
मस्तक उन्नत रहे ।


मन में सात्विक सुख की
धारा बहती रहे ।


द्वेष ना किसी में हो,
प्रेमपूर्ण जन जन हो


मानवता-सेवा में,
अर्पित यह तन- मन हो ।


सत्य -दीप जन जन में,
प्रतिपल जला करे


ईश्वर, मानवता का
सदा ही भला करे।


----अरविंद पाण्डेय


रविवार, 26 अक्तूबर 2008

मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ..



जिसके दम पर दमकती रही मुंबई
जिसके बल पर बहकती रही मुंबई
जिसके जज्बे से जीती रही मुंबई
मुंबई की सड़क पर वो मैं तो हूँ ।


जिसके सुर से संवरती रही मुंबई
जिसकी धुन पर थिरकती रही मुंबई
जिसके सपनों में सजती रही मुंबई
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।


जिसके पैसे पे पलती रही मुंबई
जिसके चलने से चलती रही मुंबई
जिसके ढलने से ढल जायगी मुंबई
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिससे वादा हुआ- काम देंगे तुम्हे
गिरने जब भी लगो - थाम लेंगे तुम्हे
शान बढ़ जाय - वो नाम देंगे तुम्हें
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिससे वादा हुआ - काम आयेंगे हम
इक बरक्कत का गुलशन खिलाएंगे हम
अपने लोगो की गुरबत मिटायेंगे हम
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिससे वादा हुआ, फ़िर से तोडा गया
लाके मंझधार में फ़िर से छोडा गया
जिसके टूटे दिलों को न जोड़ा गया
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।


जिसको अपनों ने फ़िर से है धोखा दिया
मज़हब-ओ-जात में बाँट के रख दिया
कुछ करेंगे - कहा था , मगर ना किया
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।


कितने अरमां से रहवर बनाया उसे
कितनी हसरत से कुर्सी दिलाया उसे
जीत की फूल - माला पिन्हाया उसे
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिसकी लाशों की सौगात भेजी गयी
जिसके अपनों की औकात परखी गयी
गैरत-ओ-शान,पर,जिसकी यूँ मिट गयी
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिसकी बोली पे सारा ज़माना फ़िदा
बिकती बाज़ार में, जिसकी नाज़-ओ-अदा
अब तो दुनिया बुलाती जिसे दे सदा
मुंबई की सड़क पर वो ही तो हूँ ।

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सृजनात्मक अहिंसक प्रतिरोध 
एकमात्र उपाय :
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मुंबई में राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को गंभीर
क्षति पहुचाने वाले राष्ट्रीय अपराध के प्रति पूरे देश में
व्यापक प्रतिक्रया और अनुक्रिया हुई है ।
सारा देश, इन घटनाओं से हतप्रभ और मर्माहत है ।
किंतु प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करने में जिस
सतर्कता की आवश्यकता है -कभी कभी उसका ध्यान
नही रखा जा रहा है ।
हम राहुल राज का उदाहरण लें ।किस विधि से हमें
मुंबई की घटनाओं पर प्रतिक्रिया करनी है - यदि यह
उस बहादुर राहुल को पता रहता तो शायद वह मुंबई
पुलिस की गोलियों से स्वर्गवासी नही होता ।
पुलिस को भी इस मामले में जिस सतर्कता से काम करना
चाहिए था , उसने नही किया -- ऐसा लोग मान 
रहे हैं । यह मामला सीधे 
तौर पर उत्तर भारतीयों और मराठी - भाइयो के बीच 
तनाव के लिए राज ठाकरे द्वारा चलाये जा रहे अभियान 
से जुडा हुआ होने के कारण और अधिक ध्यान
से देखे जाने योग्य था । मुंबई -पुलिस उसे 
पकड़ने का प्रयास कर सकती थी । 
धर्म -स्थलों में छुपे आतंक वादियों के मामलों,
स्थिति
की संवेदनशीलता की दृष्टि से ,
पुलिस अक्सर, हमले की बजाय पकड़ने का 
प्रयास करती देखी जाती रही है । 
इस समय अवैध तरीकों से व्यक्त प्रतिक्रया शायद
कोई अनुमोदित नही करेगा । क्योंकि इससे मुंबई में
रह रहे उत्तर भारतीयों पर क्षेत्रवाद पर आधारित 
हिंसा का खतरा बढ़ सकता है । 
मुंबई के माफिया गिरोह के लोग, उत्तर भारतीय
नौजवानों का दुरुपयोग अव्यवस्था फैला कर
अपने हित-साधन के लिए भी कर सकते हैं । 
सम्पूर्ण देश जानता है कि जब राष्ट्रीय - स्वाभिमान के
प्रतीकों को नमन करने का अवसर आता है तब छत्रपति
महाराज शिवा जी का नाम सर्वप्रथम लेने की इच्छा
होती है । हमारे देश में हर माता, प्रातः स्मरणीया माता 
जीजा बाई बनने की महत्वाकांक्षा रखती है ।
जब गीता के रहस्यों का बोध प्राप्त करना होता
है तब हम भारत के लोग, संत ज्ञानेश्वर और लोकमान्य
बाल गंगाधर तिलक की ज्ञानेश्वरी और गीता- रहस्य
की शरण लेते हैं ।
और इसीलिये हम , मराठा प्रदेश को राष्ट्र ही नही
महाराष्ट्र कहते रहे हैं । आज भी सारा देश और विश्व भी ,
जब शाँति-कामी होता है तब वह श्री कृष्ण की वंशी
की अवतार लता मंगेशकर के स्वर की शरण लेता है ।
इसलिए , राज ठाकरे और उनके राक्षसत्व का उत्तर
हमें स्थिर बुद्धि से देना होगा अन्यथा हम इनलोगों के
बिछाए जाल में फंस जायेंगे ।
इन घटनाओं के " निष्क्रिय उत्तरदायी " वे भी हैं जिनकी
अकर्मण्यता के कारण , हम बिहार के लोग, कारखानों में काम
करने , ड्राइवर, सुरक्षा - गार्ड , चपरासी , आदि की नौकरी
करने मुंबई और दूसरे राज्यों शहरों में जाने को
विवश होते हैं।
हम जानते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण
रोज़गार गारंटी अधिनियम अगर शतप्रतिशत ईमानदारी
के साथ बिहार में लागू करा दिया जाय तब मुम्बई सहित
देश के अन्य औद्योगिक राज्यों में मेहनतकशों की कमी
हो जायेगी और वे हमारे लोगों को को अधिक पैसा
और सम्मान के साथ काम के लिए आमंत्रित करेंगे ।
आज भी भोजपुरी फ़िल्म उद्योग पटना में स्थानांतरित
नही हो पाया । प्रकाश झा , मनोज तिवारी आदि ने
बिहारी- भाषा , विषयवस्तु , संस्कृति , संगीत से किन
उपलब्धियों को हासिल किया - यह सब जानते हैं ।
किंतु , इनमे से किसी ने बिहार में शूटिंग स्टूडियो
बनाने की कोई पहल नही की । 
यह भी सभी जानते
हैं कि इस समय कौन कितना ताकतवर है ।
ताकत का प्रयोग अपने निजी फायदे के लिए करने की 
होड़ है लोगों में ।
इसलिए हम इन अपराधों के " सृजनात्मक अहिंसक 
प्रतिरोध "
का आहवान करते हैं जिसके लिए 
प्रकाश झा मनोज तिवारी
जैसे लोगो से अपील की जाती है कि वे एक वर्ष के
के लिए मुंबई छोडें और फ़िल्म शूटिंग कि सारी कारर्वाई
बिहार में करे ।

हम नरेगा के क्रियान्वयन के लिए
जिम्मेदार लोगो से अपील करते हैं कि वे कम से कम
बिहारी मेहनतकशों को बिहार में ही रोज़गार की गारंटी
दे जिससे राज ठाकरो को पता लग सके कि बिहार
तैयार है उन्हें गांधीवादी तरीके से जवाब देने के लिए ।

यदि ये लोग ऐसा नही करे तो हमें समझना होगा
कि हम अपनो के कारण हारते रहे हैं . 

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

प्यारे पैगम्बर मोहम्मद मुस्कुराए हैं ..


चांदनी ने हर तरफ़ चादर बिछाए हैं
अब मोहम्मद मुस्तफा तशरीफ लाये हैं




नूर का दरिया बहा चारो तरफ़ देखो
प्यारे पैगम्बर मोहम्मद मुस्कुराए हैं




चौदवीं के चाँद सा जो मुस्कुराते हैं
वो हमारे दिल पे छाने आज आए हैं




हर तरफ़ छाई अमन-ओ-सुकून की खुशबू
प्यारे मोहम्मद करम बरसाने आए हैं

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यह कविता मैंने मुज़फ्फरपुर के एक
मुशायरे में शिरक़त के लिए सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम रसूलल्लाह की खिदमत
में पेश करने के लिए लिखी थी ...कार में

बैठे हुए मुशायरे में जाते समय ।
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टिप्पणियों का उत्तर
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इस कविता के बारे में चंदन और अन्य मित्रों ने
टिप्पणी की है -कविता अच्छी है । पर इसको मानने वाले
जब शान्ति की बात करे तब तो ।
मैं कहना चाहूगा -
याद करे -जब कर्णाटक और केन्द्र की सरकारों
ने फ़िल्म अभिनेता राजकुमार के अपहरण के बाद
वीरप्पन के ५० गुंडों को जेल से रिहा करने का
निर्णय लिया था तब अब्दुल करीम नाम के ८० वर्षीय
वृद्ध ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर के
इसका विरोध किया था और उनकी याचिका
पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था -
अपराधी नही रिहा होंगें ।
जो सरकार विधिव्यवस्था नही संभाल सकती
वह हटे , वह गद्दी छोड़ दे और जो संभाल सकता
हो वह गद्दी संभाले ।
और तब, बिना अपराधियों की रिहाई के ही
राजकुमार भी छूटे और विधिव्यवस्था भी बनी
रही ।
भारतीय मुस्लिम देशभक्त हैं और जब राजनीतिज्ञ
देशहित को गिरवी रख रहे होते हैं तब कोई वृद्ध
अब्दुल करीम खडा होकर इस महान देश के
गौरव की रक्षा करता है ।

---अरविंद पाण्डेय

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

इक नूर का दरिया बहाने आई है ये ईद.



हर दिल का अँधेरा मिटाने आई है ये ईद
इक नूर का दरिया बहाने आई है ईद

अफ़ज़ल दुआ मानिंद खुदा को है ये कबूल
कुरआन की अजमत बताने आई है ये ईद

इंसान की शैतानियत में बह गया इंसान
बहते हुए आंसू को पीने आई है ये ईद

वहशत की आग, ज़ुल्म की लपटों में जो जले
दिल पर उन्हें मरहम लगाने आई है ये ईद


----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

जब लोकतंत्र गल जाता है..

यह लम्बी कविता उन शहीदों
के सम्मान हेतु प्रस्तुत है जो नही
जानते थे की क्रुद्घ कोशीका क्रंदन
उन पर मृत्यु संकट उत्पन्न करने
वाला है। जो अनजाने में ही एक
भयावह रात में, मुझ जैसे सरकारी
सेवकों के अपराध के कारण, कोशी
के आंसुओं के समुद्र में, सदा के लिए
सो गए।
यह काव्य उन देश-भक्तों के सम्मान में भी
प्रस्तुत है जो बिहार में नहीं है पर
हमारे संकट मेंहमारे साथ खड़े है ---
मैं ऐसे सभी बिहार भक्तो को सैल्यूट
करता हूँ जो समूह बना कर, बचे हुए
के लिए दिन रात काम कर रहे है
==================
बिखरी कोशी बिखरा बिहार
फिर भी, मन में सपने हजार
१-
हो नदी या कि नारी, उर्मिल
चाहेगी बिखरे नहीं सलिल
कोई तटबन्ध उसे रोकें
हो अनियंत्रित , कोई टोके
कोशी तो करती थी पुकार
बांधे कोई, दे उसे प्यार
२-
पर कही, किसी ने नहीं गुना
कोशी का क्रन्दन नहीं सुना
नौकरशाहों का था निर्णय
हो शान्ति या कि फिर मचे प्रलय
मजदूरी नहीं बढ़ाएगे
जन में जल-प्रलय मचाएगें
३-
खण्डित कुशहा तटबन्ध हुआ
कोशी को क्रोध प्रचड हुआ
आंसू, लहरों में बदल गए
जलमग्न ग्राम, वन, नगर हुए
जब नारी, नदी कुपित होती
सारे समाज की क्षति होती
४-
मन में दानव सा लोभ लिए
मानव ने कैसे पाप किए
पानी बनकर ईमान बहा
कहने को ना कुछ शेष रहा
उन्मत हंसी नौकरशाही
गलकर बह गई लोकशाही
५-
कहने को है मजबूत तन्त्र
कोई कुछ करने को स्वतन्त्र
बाहर से हस्तक्षेप नहीं
कर्तव्य-कर्म में क्षेप नहीं
पर जनगण का टूटा सपना
कानून हुआ अपना अपना
६-
व्याकुल कोशी है दौड़ रही
रुकने का ठौर तलाश रही
जब नई न कोई राह मिली
तो गांव, नगर की ओर चली
भटके लाखों जन द्वार द्वार
सपने बिखरे है तार तार
७-
घर द्वार बहा, परिवार बहा
सपनों का भी संसार बहा
कोई अनाथ शिशु बिलख रहा
बूढा भी कोई फफक रहा
माताएं पुत्र-विहीन हुई
वत्सलता ममता दीन हुई
८-
फिर भी लहरों को चीर चीर
जीने की चाह लिए , अधीर
पल पल बरसाते नयन-नीर
अन्तर में धारे गहनपीर
बचकर आया जो बिलख रहा
खुद बचा, मगर परिवार बहा
९-
कंधे पर बकरी को डाले
बच्चे को लटका लिया गले
पानी में पौरुष-अग्नि जला
जलमग्न भूमि पर बढ़ा चला
मानव का जय-अभियान धन्य
मानव, स्रष्टा का सुत अनन्य
१०
गिरते को फिर से लिया थाम
पूछा ना मजहब, जाति, नाम
सोदर तो नहीं, मगर, बढकर
रोते भाई का हाथ पकड़
गदगद हो गले लगाते है
हम उनको शीश नवाते है
११
तटबन्ध नहीं टूटा था यह
भगवान् नहीं रुठा था यह
कोशी का दोष नहीं कोई
किस्मत थी कहीं नहीं सोई
उनका ही है यह घोर पाप
जो करते अब मिथ्या-विलाप
१२
अच्छा ! न अभी कुछ बोलेंगे
पर, कभी तो मुह को खोलेंगे
जो शत्रु बना मानव का, जल
किसके पापों का था प्रतिफल
देना होगा उत्तर इसका
वह कौन ? पाप था यह किसका
१३
जब बधने को व्याकुल कोशी
बजती थी तब उनकी वंशी
मन बहलाते थे चाटुकार
कहते थे- है शुभ समाचार
एहसास हो रहा था सुखप्रद
मौसम लगता सब ओर सुखद
१४-
जब जन-सेवा का ध्यान न हो,
कर्तव्यों का खुद भान न हो,
नौकर, मालिक की चाल चले
नौकरशाही फूले व फले
तब लोकतंत्र गल जाता है
नौकर, मालिक बन जाता है
१५.
है धर्म-प्रवर्तक लोकतंत्र
सत्कर्म-प्रवर्तक लोकतंत्र
बन्धुता- प्रवर्तक लोकतंत्र
समता का रक्षक लोकतंत्र
जब लोकतंत्र गल जाता है
नौकर, मालिक बन जाता है

रविवार, 31 अगस्त 2008

मकतब में रोशन है मेरा इश्क...


मुमकिन और मुनासिब मेरा इश्क
मयकश की मस्ती सा मेरा इश्क

मकतब में रोशन है मेरा इश्क
मंजिल का रहबर है मेरा इश्क


----- अरविंद पाण्डेय